पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की पहल से भारत का तेल उत्पादन क्षेत्र में बढ़ता कदम

NYCS    13-Apr-2018
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प्रधान सेवक

 

एक से अधिक कारणों से बने पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान बधाई के हक़दार

   
दिनांक 13 अप्रैल को मराठी दैनिक लोकसत्ता में छपे संपादकीय लेख का हिंदी अनुवाद 
 
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान कई कारणों की वजह से बधाई के हक़दार बने हैं | सबसे ताज़ा वजह है सौदी अरेबिया की कंपनी अराम्को का, भारत की सरकारी तेल कंपनियों के साथ कोंकण के नाणार में ऑइल रिफाइनरी की स्थापना पर समझौता | इस समझौते की संपूर्ण नीति योजना श्री. धर्मेंद्र प्रधान जी की बनाई हुई थी | इस नीति योजना के कई पहलू हैं और वह सभी भारत की ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं | परंतु, धर्मेंद्र प्रधान जी को बधाई देने का यह एकमात्र कारण नहीं है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के गिने-चुने कुशल, अभ्यासक एवं दूरदृष्टि रखने वाले मंत्रियों में श्री. धर्मेंद्र प्रधान अग्रस्थान पर हैं | देखा जाए तो बड़े-बड़े खोखले वादे करने वालों की, प्रधानमंत्री मोदी की खुशामदी करने वालों की कमी नहीं हैं | ऐसे में बस अपने काम पर ध्यान देते हुए ईमानदारी से अपना खाता चलाना आसान नहीं, और फिर इस मंत्रालय पर बड़े उद्यमियों और दूसरे हितैशियों का भी दबाव रहता है | काँग्रे के कार्यकाल में एक “महानुभाव” थे जो देश के कम किसी खास उद्योगपति के मंत्री ज्यादा लगते थे | मगर श्री. धर्मेंद्र प्रधान के बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है | यह भी उनकी प्रशंसा का एक मुख्य कारण है | ये तो हुई उनकी कार्यनीति की बात, अब चर्चा करते हैं उनके इस ताज़ा समझौते के बारे में...

 

सौदी अरेबिया की कंपनी अराम्को दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी है | गैर-सरकारी क्षेत्र में दुनिया में दुसरे स्थान की बड़ी कंपनी एक्झॉन मोबील (पहली निसंदेह अ‍ॅपल) से भी सौदी अराम्को सोलह गुना बड़ी है | दुनिया के रोजमर्रा के तेल बाज़ार का करीबन ३० प्रतिशत हिस्सा सौदी अरेबिया यानि कि अराम्को का है | सौदी अरेबिया का राज घराना इस कंपनी का पूरा अधिकार अपने पास ही रखता है | कंपनी ने फ्रान्स, अमरीका और अफ्रीका के कई देशों में बड़े पैमाने पर ऑइल रिफाइनरी में निवेश किया है और उतना ही बड़ा निवेश वह भारत में भी करना चाहती है | इसके लिए उन्होंने कोंकण के रत्नागिरी ज़िले के नाणार में बनने वाली संभावित ऑइल रिफाइनरी को चुना है | इस रिफाइनरी के लिए कुल निवेश करीबन ४,४०० करोड़ डॉलर जितना बड़ा होगा जिसमें से आधा हिस्सा सौदी अराम्को का होगा | प्रकल्प के पूरे होने पर इसकी तेल शुद्धिकरण की क्षमता रोज़ाना १२ लाख बॅरल्स की होगी | साथ ही करीबन दो ला टन जितनी महत क्षमता के केमिकल्स भी यहाँ निर्माण होंगे | यह सारे केमिकल्स प्लास्टिक से लेकर नाप्था सभी के लिए जरुरी होते हैं | आज की तारीख़ में भारत रोजाना ४० लाख बॅरल्स तेल आयात करता है जिसमें से आठ लाख बॅरल्स तेल तो अराम्को से ही आता है | “मेक इन इंडिया” या स्वदेशी के नाम का कितना भी डंका बजाओ, इस बात में दोराय नहीं की देश में खनिज तेल है ही नहीं | इसीलिए भारत के खनिज तेल की जरूरत का ८२ प्रतिशत हिस्सा आयात करने के अलावा हमारे पास कोई और चारा नहीं है | भारत का विकास दर कम से कम नौ प्रतिशत पर पहुँचाने का हमारा सपना है | अगर इस सपने को सच करना है या इस लक्ष्य के करीब भी पहुँचना है तो दिन के एक करोड़ बॅरल तेल की आवश्कता होगी | यदि ऐसा हुआ, तो दुनिया का सबसे ज्यादा तेल इस्तेमाल करने वाले राष्ट्रों में से एक हमारा होगा | इन हालातों में तेल की जरूरत को इस हद तक पूरा करने वाली परियोजना यदि देश के भीतर ही आकार ले रही है तो हमें निश्चित रूप से इसका स्वागत करना चाहिए | उन्नीस सौ पचास के दशक में पंडित नेहरू और केशवदेव मालवीय ने तेल एवं प्राकृतिक गैस संस्थाओं का निर्माण किया तथा मुंबई में बीच समंदर में बॉम्बे हा की निर्मिती की इसीलिए आगे की आधी सदी बिना किसी रुकावट के गुजर गई | उसी दूरदृष्टिता से नाणार परियोजना पर भी विचार किया जाना चाहिए |

 

इस परियोजना की भव्यता का अनुमान करना हो तो एक और प्रकल्प से तुलना की जा सकती है और वह परियोजना है रिलायन्स समूह का जामनगर स्थित प्रकल्प | इस एक परियोजना ने गुजरात के औद्योगिक क्षितिज का रंग ही बदल दिया | संभवित नाणार परियोजना भी महाराष्ट्र के लिए जामनगर का जादू चला सकती है | यह तुलना केवल औद्योगिक निवेश के दृष्टि से महत्व नहीं रखती, बल्कि इस परियोजना में निर्माण होने वाले शुद्ध खनिज तेल का भी अनन्य साधारण महत्त्व होगा| रिलायन्स की जामनगर स्थित परियोजना में रोज़ाना १२ लाख ४० हजार बॅरल्स शुद्ध तेल का उत्पादन होता है | जामनगर की यह रिफाइनरी दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी है | इसकी तुलना में नाणार में बन रही नई रिफाइनरी शुरुआत में १२ लाख बॅरल्स की ही क्षमता रखेगी | इस बात को ध्यान में रखना इसीलिए जरुरी है कि इस पैमाने की कोई अन्य सरकारी या गैर सरकारी परियोजना होने के कारण इस क्षेत्र में रिलायन्स का ही एकाधिकार था | इसके अलावा इस बात की भी कोई गारंटी नहीं की रिलायन्स समूह अपने रिफाइनरी में बने शुद्ध तेल को भारत में ही बेचेगा | इतिहास गवाह है कि तेल बाज़ार में बिक्री दर लगे बंधनों की वजह से इस कंपनी ने पड़ोसी मुल्कों के बाज़ार को भी अपनाया है | ऐसे में इस क्षेत्र पर किसी एक समूह या कंपनी का एकाधिकार न रहे इस उद्देश्य से भी ऐसी बड़ी परियोजना की जरूरत थी | सौदी अराम्को की सहायता से नाणार में बनने वाली यह परियोजना इ जरुरत को पूरा करने का लक्ष्य रखती है |

 

 

 
इस परियोजना में हिंदुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम और इंडियन ऑइल इन तीन सरकारी कंपनियों का ५० प्रतिशत हिस्सा रहेगा | दूसरा ५० प्रतिशत हिस्सा सौदी अराम्को का होगा | इसके अलावा इस परियोजना में बड़े पैमाने पर हायड्रोकार्ब से जुड़े रसायन या केमिकल्स भी तैयार होंगे | खाद या उर्वरक, पेट्रोलियम जेली, और कीटनाशकों से लेकर नायलॉन तक सभी उत्पादनों के लिए ये रसायन महत्वपूर्ण हैं | उसपर गैर सरकारी निजी क्षेत्र के उद्योग समूह का एकाधिकार और अस्सी के दशक में इस एकाधिकार के चलते देश के सामने खडी समस्याओं के बारे में हम सभी जानते हैं | उम्मीद है की नाणार परियोजना में ऐसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा | इसी वजह से यह परियोजना और पेट्रोलियम मंत्री श्री. धर्मेद्र प्रधान का निर्णय दोनों ही बधाई के पात्र हैं |

 

इस परियोजना को विरोध भी बहुतों ने किया | शिवसेना में होते हुए अन्य पक्षों में व्यक्तिगत लाभ के अवसर ढूँढने वाले और आखिर काँग्रेस से जा मिलने वाले और बावजूद उसके परिस्थिति अनुसार भाजप का साथ देकर अपनी रोटी सेंकने वाले नारायण राणे और स्वयं शिवसेना इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं | इस विरोध का कोई तात्विक या सैधांतिक आधार नहीं है| वैसा आधार हो, इतनी ना नारायण राणे की समझ है न शिवसेना की | कुछ ठेके मिले नहीं कि इनका विरोध शांत हो जाता है, यह हम एनरो के समय से देखते आ रहे हैं | वर्तमान परिस्थिति में उनके इस व्यवहार में कोई बदलाव होगा ऐसी आशा भी नहीं | संयोग और सौभाग्य से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उनके विरोध करने के स्वभाव से भली-भांति परिचित हैं इसीलिए वे जानते हैं कि इस विरोध को कितनी तुला देनी है| इसी वजह से बिना किसी झिझक के उन्होंने इस परियोजना को इस मक़ाम पर पहुँचाया है और श्री. धर्मेन्द्र प्रधान ने सौदी अराम्को के साथ किया हुआ समझौता इसी बात का साक्षी है| परियोजना के विरोधकों पर ध्यान न देते हुए आगे बढ़ना ही समझदारी है |

 

भारतीय ऊर्जा क्षेत्र के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री केशवदेव मालवीय का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है | सौदी अराम्को के साथ यह प्रकल्पित परियोजना जब वास्तव रूप लेगी, तब धर्मेंद्र प्रधान जी का नाम भी उसी श्रृंखला में लिया जाएगा। इस अर्थ में, वे इस क्षेत्र के सच्चे प्रधान सेवक होंगे।