जन स्वास्थ्य की राह उद्यम विकास के साथ  

NYCS    14-Apr-2017
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भारत एक विकसनशील देश से विकसित राष्ट्र बनने की राह पर बड़ी तेजी से कदम बढ़ा रहा है| सरकार की कई फ्लैगशिप योजनाएँ दश को सुयोग्य दिशा में आगे ले चलने के लिए सिद्ध हैं| स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं में शिक्षा, विज्ञान, उद्यम और खेल के साथ साथ लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए सरकार की २००८ में बनी जन औषधि योजना, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रयत्नों से काया बदलते हुए  “प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना”(PMBJP) के रुप में नए विश्वास से समृद्ध हो रही है| किसी भी योजना की समृद्धि लोगों द्वारा उसे अपनाए जाने से बनती है और पीछले दो वर्षों से इस योजना की जागरुकता और व्यापकता इसे लोगों के लिए अधिक से अधिक विश्वसनीय बना रही है| सरकार की तरफ से फार्मास्यूटिकल्स तथा रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत, इस योजना के  कार्यान्वयन का जिम्मा BPPI (भारतीय फार्मा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का ब्यूरो) का रहेगा| एन.वाय.सी.एस इंडिया इस योजना के कार्यभार में सहयोगी साथी के रुप में शामिल है|  १८ जनवारी २०१७ को दिल्ली में इस विषय में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की एजेंसी BPPI  तथा एन.वाय.सी.एस इंडिया ने सहमति ज्ञापन पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर करते हुए इस सांझेदारी के तहत देश के हर ब्लॉक तथा पंचायत में सवास्थ्य सुरक्षा हेतु १००० जन औषधि केंद्रों की स्थापना के समझौते पर अनुमोदन किया|

बीमारी घर देख कर दरवाजे पर दस्तक नही देती| यही एक ऐसी चीज़ है जिसमे अमीर और गरीब का कोई भेदभाव नहीं| जब बीमारी भेदभाव नहीं करती तो उसके उपचार में आर्थिक स्थिति के चलते क्यों कोई भेद रहे, इसी विचार को सम्मुख रखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने “प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना” को एक नई दिशा दी है| गरीब को सस्ती दवा मिले, गरीब को दवाई के बिना मरने की नौबत न आए इसीलिए इस योजना अंतर्गत पूरे देश में जन औषधि केंद्रों की स्थापना का अभियान चलाया जा रहा है| जन औषधि केंद्रों के जरिए आम जनता के लिए उत्तम गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाईयाँ किफ़ायती दामों में उपलब्ध कराई जाएँगी|

एन.वाय.सी.एस के जिला एवं राज्य प्रतिनिधियों के लिए फरवरी में दिल्ली तथा मार्च महीने में भुवनेश्वर में दिशानिर्देशन की कार्यशालाएँ (orientation workshops) भी आयोजित की गईं जिनका हेतु हमारे प्रतिनिधियों और युवाओं को इस योजना से भली भांति परिचित कराना तथा आने वाले दिनों में इस योजना को अपने अपने जिलों और क्षेत्रों में जन जन तक पहुँचाना रहा| २४ राज्यों से १०६ जिलों के प्रतिनिधि दिल्ली की कार्यशाला में प्रतिभागी हुए| साथ ही में BPPI के अधिकारी, मेडिकल और फार्मा सेक्टर के उद्योजक, अस्पतालों तथा दूसरी वैद्यक योजनाओं के प्रतिनिधी भी इस कार्यशाला में शामिल हुए| इस परियोजना को देश के कोने कोने में ले जाने के लिए और जन स्वास्थ्य के साथ साथ युवा उद्यम विकास को बढ़ावा देने के लिए एन.वाय.सी.एस की हर मुम्किन कोशिश रहेगी|

क्या होती है जेनेरिक दवाईयाँ और ये क्यों होती हैं सस्ती?

ब्रांडेड दवाओं जैसी ही खुराक, उद्द्येश्य, प्रभाव, दुष्प्रभाव, सेवन का प्रयोजित मार्ग, जोखिम, सुरक्षा रखने वाली जेनेरिक दवाएँ, ब्रांडेड दवाओं का ही किफ़ायती परंतु उतना ही समर्थ प्रतिरूप है| “उत्तम गुणवत्ता की दवाई उचित दामों पर” इस सूत्र पर चलते हुए प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) जनऔषधि केंद्रों के जरिए जेनेरिक दवाईयाँ आपके परिसर में उपलब्ध कराएगी| यहाँ ये समझना बहुत जरुरी है कि कम दाम होने कि वजह से दवाईयों कि गुणवत्ता पर कोई समझौता नहीं किया गया है|

जब कोई फार्मा कंपनी किसी नई औषधि के निर्माण का सूत्र विकसित करती है और उसका पेटंट हासिल करते हुए , उसे बेचने का एकाधिकार रखती है तो ऐसी दवाईयाँ “ब्रांडेड पेटंटेड ड्रग्ज ” कहलाती हैं| कंपनी किसी नई औषधि का बाजार में बिक्री के लिए प्रमोचन(launch) करती है तो ऐसी औषधि का मूल्य प्रायः अधिक होता है क्योंकि इस मूल्य निर्देश में उसके अनुसंधान (reserach), विकाशन (development), विपणन (marketing), ब्रांडिंग एवं विज्ञापन(promotion and advertising) का भी समावेश होता है| इस भारी लागत कि वजह से आम तौर पर कंपनी पेटंट के लिए आवदेन करती है जिससे कंपनी को पेटंट की अवधि के दौरान उस दवाई को बेचने का एकाधिकार प्राप्त होता है| “पेटंटेड ड्रग्ज” कि महँगाई कि यही वजह है|

पेटंट की अवधि की समाप्ति पर संबंधित फार्मा कंपनी या कोई दूसरी कंपनी भी आवश्यक अनुज्ञापत्र के साथ इसी सूत्र पर आधारित दवाईयाँ  बनाकर उन्हें बेचने का अधिकार रखती हैं| ऐसी दवाईयाँ “जेनेरिक ड्रग्ज” कहलाती हैं| अब ये दवाईयाँ “पेटंटेड” से “जेनेरिक” बन जाती हैं और अनुसंधान, विपणन आदि की ऊपरी लागत के कम होने से अधिक किफ़ायती बन जाती हैं| कई कंपनियों की उसी दवाई बनाने की स्पर्धात्मक होड में दवाई की कीमत और भी कम हो जाती है|

जन औषधि के जेनेरिक दवाईयों से बचत

हायपरटेंशन, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज भारतीयों में सामान्यतः पाई जाने वालीं स्थायी बीमारियाँ हैं| आम अन्वेषण के अनुसार पचास पचपन की उम्र तक आप इनमे से एक और साठ पैंसठ तक की उम्र तक शायद ऐसी दो बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं|

बारम्बार होने वाले इस खर्च का भार पेंशनर्स के लिए या बढती उम्र की वजह से कार्य बल से बाहर हुए लोगों के लिए और भी भारी हो जाता है| किसी वृद्ध जोड़े में जहाँ दोनों ही व्यक्तियों को नित्य रुप से इन दवाईयों की जरुरत पडती हो , उनपर पड़ते आर्थिक बोझ का अनुमान तो लगाया ही जा सकता है| कभी कभी तो अपनी आय का २० से ३० फीसदी हिस्सा उन्हें बस इन दवाईयों पर खर्च करना पड़ता है| जनऔषधि केंद्र लोगों के लिए किफायती दवाईयों का सर्वोत्तम पर्याय बन सकते हैं| 

जब मूल्य की बात चले तो जेनेरिक एवं ब्रांडेड दवाओं के मूल्यों में काफ़ी अंतर होता है| देखा गया है कि जेनेरिक दवाईयों की किमतें ब्रांडेड दवाईयों की किमतों से औसतन ८०-८५ फीसदी कम होती हैं| जहाँ महीने के कुछ तीन पाँच हज़ार रुपए दवाईयों पर खर्च हों वहीं आज जेनेरिक दवाईयों से यही मूल्य कुछ सौ रुपयों पर आ गया है|

जन औषधि – गुणवत्ता पर कोई समझौता नहीं

मूल्य में कटौती का मतलब गुणवत्ता में कटौती कतई नहीं है| जेनेरिक दवाईयों का उत्पादन भी WHO द्वारा प्रशासित मापदंडो और मानकों के आधार पर ही किया जाता है |

जेनरिक दवाई का उत्पादक यह सिद्ध करने का बाद ही, कि उसकी दवाईयाँ गुणवत्ता में ब्रांडेड दवाओं के बराबर हैं, उसे बेच सकता है| सभी जेनेरिक दवाओं के उत्पादन, पैकेजिंग और परिक्षण के गुणता मानक भी ब्रांडेड दवाओं के उन्ही विवरणों से मेल खाते होने चाहिएँ| NABL से मान्यता प्राप्त PMBJP अंतर्गत जेनेरिक दवाईयाँ उन्हीं मान्यकों पर जाँची परखी जातीं हैं जिसपर कि प्राईवेट एवं ब्रांडेड दवाईयों का भी परिक्षण होता है | भारत में सभी प्रकार की दवाईयों का प्रत्यायन (accreditation) नैशनल अक्रेडीशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज याने कि NABL द्वारा ही किया जाता है| NABL का मानना है कि ग्राहकों को सातत्य से संतुष्ट रखना ही उत्तम गुणवत्ता का प्रतीक है | जन औषधि केंद्रों में वितरित होने वाली जेनेरिक दवाईयाँ NABL के नियमों तथा WHO द्वारा बताई गई उत्पादन संबंधी अच्छी कार्यरीतियों (Good Manufacturing Practices-GMP) के अनुसार ही बनती हैं | जब ब्रांडेड दवाओं से तुल्य सामर्थ्य कम दामों के जेनेरिक औषधियों में मिले तो अधिक दाम क्यों खर्च किए जाएँ?

जन औषधि केंद्र – उद्यमिता का नया मार्ग

एन.वाय.सी.एस ने हमेशा ही उद्यम विकास को प्रोत्साहित किया है| प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना ग्राहकों और फार्मासिस्ट दोनों ही के हित में दोहरे लाभ वाली योजना है| लोगों को कम दामों में उत्तम गुणवत्ता वाली दवाईयाँ उपलब्ध हो पाएँगी तथा फार्मासिस्ट को भी एक ही जगह से अपनी सारी जरुरतों की वैद्यक उत्पाद वस्तुएँ प्राप्त होंगी| चिक्तिसा विधान लगभग सारी ही औषधियाँ जनऔषधि केंद्रों पर उपलब्ध रहेंगी| इस योजना अंतर्गत जनऔषधि केंद्रों में उपलब्ध ६०० औषधियाँ हैं और जल्द ही यह उत्पाद  श्रुंखला १००० से भी अधिक औषधियों का वितरण करेगा इसके साथ साथ १५४ सर्जिकल एवं अन्य स्वास्थ्य संबंधी वस्तुओं का भी समावेश इस योजना में है| विविध वैद्यकीय उत्पादों की सुलभ उल्पब्धि इन केंद्रों का उद्द्येश्य है|

राज्य सरकार या कोई भी संगठन / प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठन / कोई ट्रस्ट / निजी अस्पताल / चैरीटेबल संस्था / बेरोजगार फार्मासिस्ट या कोई भी व्यक्तिगत उद्यमकर्ता नए जन औषधि केंद्र के लिए आवेदन करने का पात्र है| आवेदनकर्ता को बस चाहिए अपनी या किराये की कोई जन औषधि केंद्र उपयुक्त जगह और उस जगह के स्वामित्व या लीज़ के दस्तावेज़| किसी बी.फार्म या डी.फार्म पदवीधारी को सेवा में रखना अनिवार्य होगा| केंद्र के लिए ड्रग्ज लायसेंस प्राप्त करना भी आवेदनकर्ता कि जिम्मेदारी होगी| जन औषधि केंद्रों में सारी औषधियाँ का अधिभार सरकारी कार्यकारी एजेंसी BPPI पर होगा जो फार्मा PSU’s या प्राइवेट कंपनियों से इनकी खरीदारी करेगी| साथ ही वैद्यकीय क्षेत्र सहबद्ध या समवर्गी केमिस्ट की दुकान पर मिलने वाले दूसरे उत्पादों को बेचने की अनुमति भी जन औषधि केंद्रों को मिलेगी जिससे कि व्यवसाय कि व्यवहार्यता बढे|

जन औषधि केंद्र – सरकार करेगी लागत में मदत

यदि जन औषधि केंद्र किसी अस्पताल के भीतरी परिसर में खोला जाता है तो सरकार ने  कंप्यूटर और प्रिंटर के लिए पचास हजार और फर्निचर आदि के लिए एक लाख रुपये तक की मदद का प्रावधान रखा है| इसके अलावा शुरुवात में एक लाख रुपए मूल्य की दवाईयाँ केंद्र को मुफ्त मुहैय्या कराई जाएँगी| यदि जन औषधि केंद्र अस्पतालों से बाहर शहर के दूसरे हिस्सों में हो तो ढाई लाख की मर्यादापुष्टि होने तक हर महीने बिक्री के १५% या १०००० रुपयों का हिस्सा (दोनों में से निम्न राशि) केंद्र चालक को बराबर मिलता रहेगा| उत्तरपूर्व राज्यों के लिए यही मासिक अनुदान १५% या १५००० रुपए(दोनों में से निम्न राशि) किया गया है| इसके अलावा MRP पर रीटेलर्स को २०% की आमदनी का प्रावधान है| अनुसूचित जन जातियों, दिव्यांगो तथा उत्तर पूर्व राज्यों के लिए इस योजना में विशेष प्रावधान रखे गए हैं|

कम से कम लागत पर अधिक से अधिक मुनाफा देने वाले व्यवसाय का अवसर इस योजना का जरिए इच्छुक उद्यमियों को मिलेगा| जन औषधि केंद्र सामाजिक उद्यमिता का सुनहरा अवसर है जिससे कि अपने अर्थार्जन के साथ साथ आप समाज के स्वास्थ्य सुधार में भी योगदान कर सकते हैं |